“जीवनशैली”
रुक सी गई है ज़िन्दगी,
थम सी गई हैं राहें,
जानता नहीं है कोई भी,
बिना रंगों के यूँ ही जिए जा रहे हैं।
अकेले ही रास्तों पर चलते हैं,
अकेले अकेले ही मुस्कुराते हैं,
नहीं है ज़रूरत उन्हें किसी दोस्त की भी,
हक़ीक़त से बेख़बर बस जिए जा रहे हैं।
ख़त्म हो गए हैं एहसास सारे,
अधूरी हो गई नींद आँखों की,
सपनों की अलग सी दुनिया है कोई बनाई,
न जाने,कौन से किरदार निभाए जा रहे हैं।
अपने में ही मस्त से रहते हैं,
नहीं है वक़्त अपनों के लिए भी,
ज़िन्दगी की दौड़ को मुक़ाम समझ बैठे हैं,
सोचते हैं सब पा लिया है,असल में सब खोते चले जा रहे हैं॥
वन्दना सूद