अम्बर में तैरते से लग रहे बादल।
सूरज की तपन सोख रहे बादल।
काली चुनरिया सी छाई नभ में।
मिलन की प्यास बढा रही मन में।
लो रिमझिम रिमझिम शुरू हुई।
खुले आसमान में तरबतर हुई।
घुमड घुमड कर बदरिया आई।
मौसम की अंगड़ाई आस लाई।
तन मन सिहर गया 'उपदेश'।
सौंधी सौंधी खुशबू साथ लाई।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद