जब भी खाया खाना, निकाल के कुछ निवाले रखा,
न रहे कोई भूखा सोच, अलग से उसे निकाले रखा।
करने वाला तो कोई और है, मैं हूँ बस एक जरिया,
पूरी शिद्दत से किया कर्म, सब उसने सँभाले रखा।
उतार-चढ़ाव के तूफान भी, कम न आए जिंदगी में,
मैंने झुकाया सिर खुद को उस खुदा के हवाले रखा।
लोग चेहरे पे चमक और दिल में अँधेरा रखे हुए हैं,
देने वाले ने दिया रंग काला पर दिल न काले रखा।
हँसते हुए पिया जाम जिंदगी के गम और खुशी का,
कब, कौन मिल जाए, साथ में सदा दो प्याले रखा।
🖊️सुभाष कुमार यादव