विनम्रता कोई कमजोरी नहीं,
यह तो भीतर की गहराई है,
जो झुककर भी चमकती है,
वो ही असली ऊँचाई है।
शब्द कम, पर अर्थ भारी,
चेहरे पर मुस्कान न्यारी,
सुनता है, समझता है जो,
वो ही होता सबसे प्यारा ।
न बोले कभी “मैं सबसे बड़ा”,
बस कर्मों से राह दिखाता है,
सफलता उसके पाँव छूती,
जो चुपचाप आगे बढ़ जाता है।
वो पेड़ की तरह फलदार है,
झुका हुआ, फिर भी मजबूत,
विनम्र हृदय ही सच्चा राही,
जिसमें ना हो अहं का सूत।
जो झुका, वही स्थिर हुआ,
जो रुका, वही फिर चला,
विनम्रता है आत्मा की गरिमा,
जो भीतर से उजियाला मिला।
प्रो. स्मिता शंकर, बैंगलोर