मनोभूमि पर विचार रूपी बीज के अंकुरण से,
फसल रूपी कविता से जन-मन के पोषण से।
कागज के खेत पर सतत कृषक कर्म करते,
कवि जागृति लाता सदा कविता के रोपण से।
समर्पित जग को स्वीकार करे अन्तःकरण से,
निराश मन हो आशान्वित इसके स्मरण से।
कविता वो फसल जो है शाश्वत, चिरस्थायी,
मुक्ति दिलाती सदा मनुष्य को हर शोषण से।
राग-द्वेष से हो तटस्थ, दूरस्थ आकर्षण से,
सर्व हित सदैव कामना, बचाती अपकर्षण से।
मानव-मानव में नहीं कोई अंतर सभी समान,
कविकर्म करता यत्न सदा बचाने विकर्षण से।
🖊️सुभाष कुमार यादव