कविता : फंडा....
तुम बहुत सुंदर हो
तुम्हारे बगैर हम नहीं
मेरे साथ एक और है वो
भी तुम्हारे से कम नहीं
देखो एक गलती
हम से भी है
मेरा प्यार उससे भी है
तुम से भी है
तुम दोनों साथ हो तो
मेरी हवा निकलती है
कभी तुम जलती तो
कभी फिर वो जलती है
ऐसे में अब मैं
फिर कहां जाऊं ?
तुम्हें गले लगाऊं
कि उसे लगाऊं ?
न सहारा न
पकड़ने को डंडा है
बास यही मेरा
बहुत बड़ा फंडा है
बास यही मेरा
बहुत बड़ा फंडा है.......
netra prasad gautam