जाम का जुबान से , जरा,
पटरी जम नहीं पाती है
एक हलक से अंदर जाती है
दूसरी बाहर निकल आती है
ताकत जाम की
जब जब बढ़ने लगती है
तब तक जुबान की
ताकत लड़खड़ाती है
होतें हैं कुछ लोग, जिन्हें
रोना तक नहीं आता
उतरकर हलक से,जाम
फूट फूटकर रूलाती है
झूठ ज्यादा बोलते हैं
इस जहां में,होश वाले
जाम, होश बिगाड़कर
सच सच बुलवाती है
तराजू के दो पलड़े हैं,
ये जाम और जुबान
एक की वजन बढ़ती है
दूसरे की वैसे ही घट जाती है।
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




