छतरियाँ हटा के मिलिए इनसे,
ये जो बूँदें हैं, बहुत दूर से आईं हैं।
हर क़तरा एक दास्ताँ कहता है,
बादलों की गोद से प्यार लायी हैं।
भीग जाने दो इन लम्हों में ख़ुद को,
ये रिमझिम फुहारें कोई सज़ा नहीं हैं।
कभी बादल भी तन्हा रोते हैं यहाँ,
ये बूंदें उनकी सिसकी की सदा सी हैं।
तो चलो आज मौसम का साथ दें,
छाँव छोड़ सूरज की, बरसात में बात करें।
छतरियाँ हटा के मिलिए इनसे,
क्योंकि ये बूँदें दिल से मुलाक़ात करें।