शिक्षा लड़ती रही, अज्ञान के अन्धकार से।
वो चीखती रही , अपनी पूरी जान से।
ढ़ह गई मर्यादा की दीवार,
वो जलती रही अत्याचार की आग से।
आज इन्सानियत शर्मसार है,
यह स्थिति शर्मनाक है।
नाम बदलते हैं, राज्य बदलते हैं।
अत्याचारियों के चेहरे और नाम बदलते हैं।
आज आंच भारत माता के आंचल तक है,
समझ नहीं आता।
आग लगाता कौन है,
और बुझाता कौन है।