हर बार
जब दुनिया ने मुझे पत्थर की तरह तोड़ा,
मेरे भीतर से
एक नन्हा झरना फूट पड़ा।
वह झरना
मिट्टी की खुशबू ओढ़े
तुम्हारे आँचल तक बह आया—
मानो धरती की कोख से
नया बच्चा जन्म ले रहा हो।
उन्होंने जितनी बार
मेरी आँखों में अंगारे फेंके,
मेरी पलकों ने उन्हें
माँ की हथेली-सा थाम लिया,
और वे अंगारे
तुम्हारी हथेलियों में
फूलों की तरह खिल उठे।
उनकी जंजीरें
मेरे गले का फंदा नहीं बनीं—
बल्कि सीढ़ियाँ बन गईं,
जैसे माँ अपने बच्चे को
गोद में उठाकर
ऊँचाई पर बैठा देती है।
मैं उन सीढ़ियों से उतरता हुआ
हर बार
तुम्हारे घर की देहरी तक आ पहुँचा।
उनके शब्द,
कभी तीर, कभी काँटे,
मेरे लहू में घुलकर
स्याही बन गए।
और उस स्याही से
मैंने तुम्हारे नाम की चिट्ठियाँ लिखीं—
जो मैंने किसी डाकिए को नहीं दीं,
बस हवा के हवाले कर दीं।
मेरी हर टूटन
माँ की कोख की तरह निकली—
जहाँ से नया जीवन जन्म लेता है।
और मैं बार-बार
उन टूटनों से गुज़रकर
तुम्हारे पास जन्म लेता रहा।
इसलिए मैं उनका भी अहसानमंद हूँ।
उनकी बेरहमियाँ ही
मेरे लिए वह दूध बन गईं
जिससे मेरी प्यास बुझी,
उनकी कठोरता ही
मेरे लिए वह चादर बनी
जो मुझे तुम्हारे आँचल तक ले आई।
आज जब मैं पीछे देखता हूँ,
तो समझता हूँ—
दुनिया की सारी तल्ख़ियाँ,
सारे काँटे,
सारी जंजीरें
दरअसल वे दाइयाँ थीं
जो मुझे तुम्हारी गोद तक
सुरक्षित पहुँचा देती थीं।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमाशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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