ख़ुद जाना था तो वर्षों किया इंतजार क्यूँ कुछ तो बोलो
छोड़ना हीं था तो पकड़ा क्यूंँ दामन मेरा कुछ तो बोलो
बिखर कर जीने का एहसास क्या होता है शायद यही
तुम्हें समझाना था मुझे मगर क्यूंँ कुछ तो बोलो
तुमने जो दी है तन्हाई मैं उसे सज़ा क्यूँ न समझूं
तो अब मुझे तन्हा देखकर हो कितने ख़ुश कुछ तो बोलो