उत्तराखंड त्रासदी जून 2013
पर लिखीं गयी एक रचना
जाग उठा शिव
जाग उठा शिव कर तांडव
डम डम डम डमरू का नाद
ता धिन धिन ता शिव संग
नाच रहे घनश्याम
चरण लिए सुर लय ताल
नैना भरे क्रोध अंबार
जाग उठा --
लपट लपट उठ रही फुहार
बरखा नहीं भीषण है आग
कर रहा भैरव नर्तन
हो रहा अब परिवर्तन
हिल गयी धरतीं कंपित अम्बर
देव क्रोध में महा भयकंर
भवन गिरे हैं तिनका तिनका
धरनी पट गयी अब लाश
जाग उठा शिव कर तांडव
जहां कभी था भक्तन का रेला
गाजे-बाजे संग लगा था मेला
हुआ चीत्कार सा नया सवेरा
उजड़ गया हर इक बसेरा
प्रकृति हुई थी अनाथ
सुदृढ़ -सुजल है विश्वनाथ
पर वीभत्स हुआ केदार
वीभत्स हुआ केदार
#अर्पिता पांडेय