किसको अपना ज़ख़्म दिखायें,
बुत भरे हैं शहर में सारे !!
किसको अपना हाल सुनायें,
मतलबी हैं शहर में सारे !!
पैसे को ही पूजते हैं सब,
पैसे से पहचान है सारी !!
स्टेटस से पूछ-परख है,
परमारथ से दूर हैं सारे !!
मानवता मर गई यहाँ पर ,
मानव कोई रहता नहीं अब !!
बाहर से चलते-फिरते पर,
अन्दर से बेदम है सारे !!
- वेदव्यास मिश्र की सेंसिटिव कलम से
सर्वाधिकार अधीन है