कितना कुछ और गुजरेगा इतना चुपके से..
आंखों में उजाले कौन भरेगा, इतना चुपके से..।
ये दुनिया चाहे कितना शोर मचाए, मुझको क्या..
कानों में आकर सरगोशी, कौन करेगा इतना चुपके से.. ।
रात भर ख्वाबों ने नींद को भी सोने ना दिया..
उसका सपना नस नस में फिर कब उतरेगा इतना चुपके से..।
तुम जो मेरा दर्द ना सुनोगे, तो देखना ये होगा इक दिन..
इन आंखों से खारा समंदर खूब झरेगा इतना चुपके से..।
जब सब असबाब समेटेंगे और चलने लगेंगे..
तो एक सिरा छूट जाएगा, और सब बिखरेगा इतना चुपके से..