श्री रामभद्राचार्य चालीसा
।। ॐ नमो राघवाय ।।
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दोहा :
तुलसी पीठाधीस गुरु राम भद्र आचार्य ।
चित्रकूट में रमि रहे रामानंदाचार्य ।।
प्रनवउँ श्री सदगुरू चरण बरनउ मति अनुसार ।
गुरुहिं कृपा से एक दिन होगा बेड़ा पार ।।
चौपाई :
राम भद्र स्वामी भगवन्ता ।
अलख अलौकिक अविरल संता ।।
ज्ञान चक्षु अंतर्मुख जाके ।
वेद शास्त्र राजत मुख ताके ।।
सांड़ीखुर्द जौनपुर जन्में ।
सरयूपारी ब्राह्मण कुल में ।।
राजदेव गृह जन्मे गिरिधर ।
शची मिश्र माता हैं जिन्ह कर ।।
वाल्यकाल निज नेत्र गंवायो ।
सद्गुरु राम नाम धन पायो ।।
बहिर्नेत्र नहिं 'अंतर्मुखी '।
दर्शन कर होवें नर सुखी ।।
पांच वर्ष में गीता जानी ।
सतगुरु देव परम् विज्ञानी ।।
सात बरस के जब गुरु भए ।
राम चरित मानस रटि गए ।।
ऐसे परम् कृपालु मुनीषा ।
सहज भाव देते आशीषा ।।
तुलसी पीठाधीश कहाते ।
राम कथाsमृत मुखहिं सुनाते ।।
जगतगुरु की पदवी पाई ।
तुलसी पीठ त्रिकूट बनाई ।।
धर्म ध्वजा के हो संवाहक ।
सच्चे राम नाम के ग्राहक ।।
रचेउ बहुत से काब्य नवीने ।
हैं आचार्य पुनीत प्रवीने ।।
धर्मचक्रवर्ती कहलाए ।
निज बिवेक सत् ग्रंथ बनाए ।।
ब्रह्मसूत्र अरु भगवद् गीता ।
संस्कृत भाष्य लिखे सुपुनीता ।।
अष्टाध्यायी पर विश्लेषण ।
राम चरित मानस अन्वेषण ।।
नाम मंत्र भव सेतु बतायो ।
राम चरित को मर्महु गायो ।।
तुलसी के अवतार कहावत ।
सत्तर के भए हरि गुन गावत ।।
राम नाम की महिमा गाते ।
जीवन मंत्र सुजन समुझाते ।।
दिव्य स्वरूप सुजन मन मोहैं ।
जो नहिं रीझै अस जग को है ।।
अवध राम की है रजधानी ।
दीन गवाही संत सुजानी ।।
राम लौटि अपने घर आए ।
सब ऋषि मुनि जन अति हर्षाए ।।
पद्म विभूषित जग विख्याता ।
धन्य धन्य जो रचेउ विधाता ।।
दर्शन से सब दुःख हैं टलते ।
फूल खिलें जब गुरुवर चलते ।।
निर्बल को हैं देत सहारा ।
गुरुवर ऐसे परम् उदारा ।।
निर्धन हो या हो धनवंता ।
सबकी सुनते हैं भगवन्ता ।।
जय जय जय श्री सदगुरू देवा ।
सज्जन करते निश दिन सेवा ।।
राम चरण के तुम अनुरागी ।
धरम धुरंधर तुम बैरागी ।।
कलियुग के तुम युग ऋषि गुरुवर ।
वेद शास्त्र के ज्ञान सरोवर ।।
राम चरित मानस मुनि हंसा ।
निश्चय ही प्रभु ईश्वर अंशा ।।
मृदु मुस्कान मृदुल गुरु वाणी ।
तुम्हरी महिमा कोउ ना जानी ।।
सत्य सनातन के संवाहक ।
सुख दाता अरु दुःख के दाहक ।।
जग तुम्हरो जस गावै स्वामी ।
तुम अनुपम हो अंतर्यामी ।।
जिन पर कृपा तुम्हारी होती ।
पल महँ जरै दिव्य हिय ज्योती ।।
सकल निवारण जग के करते ।
दिव्य प्रकाश ज्ञान हिय भरते ।।
कोउ ना अस जग दूसर नाथा ।
समुझावै रघुपति गुन गाथा ।।
राम कृपा जा पर जग होई ।
तुम्हरी कथा सुनै नर सोई ।।
चरण कमल मैं देख्यों जब तें ।
हरि स्वरूप प्रभु पेख्यों तब तें ।।
रज्जन सरल रचित चालीसा ।
राम भद्र चरणन धरि शीषा ।।
जो कोई शरणागति है जाता ।
सो नर मनवांछित फल पाता ।।
गिरिधर चालीसा पढ़े जो निश दिन धरि ध्यान ।
राम कृपा पावै सोई होय तासु कल्याण ।।
।। सियापति राम चंद्र की जय ।।
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रचनाकार
दास रज्जन सरल