जो बन जाते हैं धुआँ वो चले जाते हैं कहांँ
दिखते हैं कुछ दूर फिर खो जाते हैं कहांँ
रह जातें हैं सिर्फ तस्वीरों में ख्वाबों व ख्यालों में
बहाते रह जातें हैं आंँसू हम समेटे उनके हर निशांँ
शुबहा होता है कई बार जैसे परछाइयांँ है उनकी
ज़ेहन में हो तो दिखते हर जगह देखो चाहे जहांँ
ठीक नहीं इतराना चाहे भरपूर हो रूप-रंग या माया
अंतिम सफ़र में संग हमारे कुछ जाता नहीं वहाँ
ऐसी मिसाल बनें हम कि अनुकरण करें सभी
अच्छे हो या बुरे कर्म तो सारे रह जाते हैं यहांँ