राहें कुर्बानियों की इतनी आसान नहीं है यारों।
कभी चलकर देखना कितनी दुखों दर्दों से भरी पड़ी हैं।
ये दुःख दुश्मन की गोलियों बमों छर्रो से नहीं बल्कि अपनों के हिसाब मांगती लोगों की ज़ुबानी हमलों से उठती टीस से है।
अपने अंतर्मन में उठती द्वंद की ज्वाला से है कि हम जिनके लिए बिखर से गए
वो लोग इस देश को ले कहां जा रहें हैं।
आखिर देश को देश की सेना को बदनाम कर पाना क्या चाह रहें हैं।
हम पर फूल मालायें चढ़तीं रहीं और
वो राजनीतिक रोटियां सेंकतें रहें।
हम घाटियों पहाड़ों नदियों दलदलों
मरुभूमियों में मरते रहें,
वो हमारी शहादत पर सवाल करतें रहें।
फट जायेगा कलेजा तुम्हारा देख कर एक दिन के अनाथ बच्चे को।
अभी हाथों की मेहंदी का रंग भी उतरा नहीं
हो गई विधवा को।
उस शहीद के मां बाप के हालात जिसकी वो इकलौती संतान थी।
इसलिए यारों....
कारगिल विजय दिवस पर आओ
हम सब प्रण लेते हैं..
हम शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित
सिर्फ याद करके हीं नहीं बल्कि
उनके परिवारों की सुधी लेके..
अपने अपने क्षमता के अनुसार हर संभव
हर तरह की मदद से..
उनके परिवार जनों की होठों पर एक अदद हंसी खुशी देकर...
किसी उदास बूढ़ी आंखो का चश्मा बनकर..
किसी उम्मीदों से भरी दुनियां में उड़ान भरकर..करतें हैं।
उन्होंने ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया
हमें भी तो सोंचना चाहिए।
हमें भी तो उनके लिए कुछ करना चाहिए।
एहसान तो कभी चुका नहीं सकतें
बस उनका अनुसरण अभिनंदन करतें हैं।
वो देश के दुश्मनों से लडतें रहें...पर ,
हमें अपने अंदर के दुश्मन से लड़ना है।
देश की जिम्मेवारी सिर्फ़ सैनिकों की हीं नहीं है..... अपितु..
हमारी भी तो कुछ जिम्मेदारियां बनतीं हैं यारों...
हमारी भी तो कुछ जिम्मेदारियां बनतीं हैं यारों..