नमस्कार दोस्तों।
सन् 1958 में श्री कांतनाथ पांडेय जी की एक रचना प्रकाशित हुई थी 'प्रेम संगीत' जिससे प्रेरित होकर सुप्रसिद्ध कवि सुनील जोगी जी ने एक कविता लिखी जिसका शीर्षक था 'मुश्किल है अपना मेल प्रिये' जिसे 2018 में आई अनुराग कश्यप की फिल्म 'मुक्केबाज़' मे फिल्माया गया है, इन्ही दो कविताओं से प्रेरित होकर मैंने ये रचना लिखने का प्रयास किया है, आशा करता हूँ आप को पसंद आएगी।
ये इश्क़ नही आसान प्रिये,
मुमकिन नहीं ये मिलान प्रिये,
तुम शाही दावत का न्यौता हो,
मैं लंगर का प्रसाद प्रिये,
तुम महँगे होटल का खाना हो,
मैं ढाबे की रोटी-दाल प्रिये,
तुम शहरी पिज़्ज़ा-बर्गर हो,
मैं माँ के हाथ का भात प्रिये,
ये इश्क़ नही आसान प्रिये,
मुमकिन नहीं ये मिलान प्रिये,
तुम आसमान को छूने वाली महँगी हवाई उडान प्रिये,
मैं बैलों से जुति सवारी गाड़ी की धीमी-धीमी चाल प्रिये,
तुम टीवी सीरियल में दिखने वाले अमीरों का अभिमान प्रिये,
मैं गरीब किसानों के खेतों में लहलहता धान प्रिये,
तुम ऊँचे महलों की रहने वाली,
मेरे सर पर न मचान प्रिये,
ये इश्क़ नही आसान प्रिये,
मुमकिन नहीं ये मिलान प्रिये,
तुम परियों की शहजादी हैं,
मैं जमीं पे रेंगता किड़ा हूँ,
तुम हद से ज्यादा सुंदर है,
मैं नाम से केवल सुंदर हूँ,
तुम मन को शीतल करने वाली प्यारी सी मुस्कान प्रिये,
मैं दिखता हूँ उस ऊपर वाले का किया कोई अहसान प्रिये,
ये इश्क़ नही आसान प्रिये,
मुमकिन नहीं ये मिलान प्रिये।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'