क्या याद है तुम्हे वो पल
वो कुछ खास बीते हुए कल
हमारा वो स्कूल जाना
घर पर आकर माँ का हाथों से खिलाना।
कभी हमारा साइकिल चलाना
कभी गुड्डे-गुड़िया की शादी कर जाना।
छुआ-छुई का वो खेल
भाग-दौड़ का वो मेल।
अक्सर ही माँ से मीठी मार खाना
फिर पढ़ाई करने लग जाना।
परिवार के साथ दूरदर्शन देखते हुए
वो एंटीने का हिल जाना।
सुनते हुए दादी की कहानियाँ
छत पर ही हमारा सो जाना।
कहाँ खो गए वो दिन
खो रहा वैसा बचपन अब तो प्रतिदिन।
-राशिका