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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

दीवारें

घर का सारा बोझ सहती हैं दीवारें
सुन के भी खामोश रहती हैं दीवारें

कान होते हैं पर जुबां नहीं इनकी
चुपचाप हर बात सुनती हैं दीवारें

नींव नीचे पर घर इन्हीं से है बनता
घर का हसीं ख्वाब बनती हैं दीवारें

है मन में फर्क जो भाइयों के बीच
बीच आंगन में तब उठती हैं दीवारें

प्यार का अंकुर पनपते ही दिलो में
खुद यहां पर स्वयं गिरती हैं दीवारें।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

🙏 सादर प्रणाम 🙏 आपकी यह रचना दीवारों के प्रतीक के माध्यम से घर, रिश्तों और भावनाओं की एक अत्यंत मार्मिक और विचारशील व्याख्या है। भाव पक्ष की दृष्टि से यह रचना गहरी संवेदनाओं से भरी हुई है — पहले तीन छंदों में दीवारें एक संघर्षशील, सहनशील और मौन संरक्षक के रूप में सामने आती हैं। चौथे छंद में वही दीवारें मानव संबंधों के विभाजन का प्रतीक बन जाती हैं। और फिर अंतिम छंद में, जब प्यार पनपता है, तो वे दीवारें स्वतः टूट जाती हैं, जो एक अत्यंत सकारात्मक और आशावादी संदेश देती हैं। कला पक्ष भी अत्यंत सशक्त है — तुकांत और छंद योजना सुसंगत है, प्रतीकात्मकता (दीवारों का मानवीकरण) अत्यंत सुंदर है, और प्रत्येक दोहा स्वतः एक विचार और भावनात्मक संदेश बन कर उभरता है। आपकी यह रचना न केवल घर की भौतिक दीवारों की बात करती है, बल्कि उन अदृश्य दीवारों की भी जो हमारे रिश्तों, भावनाओं और सोच में खड़ी हो जाती हैं। आपकी रचनात्मक अभिव्यक्ति को सादर नमन 🙏🧱❤️

Shiv Charan Dass replied

अशोक जी आपकी गहन कला त्मक प्रेरणादायक समीक्षा के लिए हार्दिक आभार

Supriya sahu said

वाह...बहुत ही सुंदर एवं लाज़वाब रचना सर जी 👌 ने, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

Shiv Charan Dass replied

प्रणाम सहित आभार

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