जिस दिन मैंने
अपनी पहचान की मिट्टी
बहती नदी में बहा दी —
उस दिन
तेरे होने की महक
पहली बार
मेरी सांसों में लौटी।
मैंने पत्तों की सरसराहट से
अपना नाम हटा दिया,
तो हवा ने तेरा नाम
हर शाख पर गुनगुनाया।
जिस दिन मैंने
अपने पैरों के निशान मिटा दिए,
बारिश ने आकर
तेरे क़दमों की आहट
मेरी छाती पर उकेर दी।
मैंने सूरज को आँखें मूँदकर नहीं देखा,
पर जिस दिन
मैंने अपनी दृष्टि खो दी —
उस दिन
तू उग आया मेरे भीतर
एक धीमी, गर्म रौशनी बनकर।
जब मैंने
अपने ही शब्दों को
चुप्पियों में दबा दिया —
तो चाँदनी
तेरे मौन की छाँह बन गई
और मेरे कमरे में उतर आई।
जिस दिन मैंने
आईने से मुँह मोड़ लिया —
उस दिन
झील की थरथराहट में
तेरा चेहरा
पहली बार साफ़ दिखा।
मैंने अपने स्वर खोए
तो पहाड़ों की गूंज ने
तेरी आवाज़ पहन ली।
मैंने अपना पता जलाया —
तो राख में
तेरी साँस की नमी मिली।
जिस दिन मैं
पूरी तरह
खुद से खाली हो गया,
तू —
हर जगह भर गया।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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