जब सत्य की कसौटी पर
विश्वास को मैंने रखा,
वर्षों की परम्पराओं को,
विचार, तर्क से परखा,
कभी आत्म संतुष्टि से,
कभी आत्म ग्लानि से,
मन को अलग-अलग,
भाव दशाओं में पाया।
जितना समेट रखा था,
सब कुछ बिखर गया,
बिखराव में जो पाया,
उसे जब मैंने अपनाया,
खण्डित हुए सब भाव,
अहं का हुआ पराभव,
मानस में छाई रिक्तता,
मन की भाव शून्यता,
अपने में जब खोया,
परम् आनंद अनंतता।
🖊️सुभाष कुमार यादव