आज मैंने पल-पल इंतज़ार किया अपनों का,
जो मेरे इंतज़ार की हद थी,
आज फिर आंसुओं की धारा बह आई आंखों से,
जो मेरे प्यार की हद थी,
आज फिर सोचने को मजबूर हुआ मैं,
क्या कोई अपना है मेरा,
आज फिर मैं उस जमाने को याद करके बैठा था,
जिस जमाने में मेरे प्यार की हद थी,
आज पैसा ही ईमान हो गया दुनिया का,
क्या प्यार बिकने लगा पैसो से,
आज उस बिकने वाले प्यार की भी हद थी,
आज उस बिकने वाले प्यार की भी हद थी,
आज फिर मेरे प्यार के रिश्ते भी टूटने लगे हैं,
आज फिर उस जमाने के एतबार की भी हद थी,
एतबार की भी हद थी,
आज फिर सोचता हूं कौन अपना और कौन पराया है मेरा,
आज फ़िर उन अपनों से पराये वाले प्यार की भी हद थी,
पराये वाले प्यार की भी हद थी,
आज फिर जिस से उम्मीद ना थी उसने थामा हाथ मेरा,
आज फ़िर उश रब से मेरे इम्तिहान की भी हद थी,
मेरे इम्तिहान की भी हद थी,
आज मैंने पल-पल इंतज़ार किया अपनों का,
जो मेरे इंतज़ार की हद थी,
जो मेरे इंतज़ार की हद थी,
कवि .....राजू वर्मा
सर्वाधिकार अधीन है