वहम की कील से ,
लटकते आईने को,
बारम्बार झांकने से ,
बेरहम पुख्ता ख्वाब,
कारवां में चलते हुए ,
सताते है नींद में भी,
हकीकतों के चेहरे को,
रौंदते हुए अहम तले,
आस्था की दीवार पर,
कैंसर से भी खतरनाक,
युगयुगान्तर लाइलाज ,
बीमारी "वहम" जिसने ,
बेड़ा गरक कर दिया है,
रिश्तों इंसानियत का,
और भुक्तभोगी ये इंसान ,
ठोक रहा है मजबूती से,
विश्वास की दीवार पर,
वहम की टिकाऊ कील !
✒️ राजेश कुमार कौशल
[हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश]