वो छोटा है,
हाथ अभी कांपते हैं जीवन की गिरहें खोलने में।
मन अभी भीगता है
हर ‘ना’ पर जैसे आकाश में बिजली कड़क गई हो।
मैं सोचता हूँ —
क्या मैं उसका भगवान हूँ?
जो उसकी हर इच्छा पर निर्णय सुनाता हूँ —
स्वर्ग मिलेगा या सज़ा?
वो जब सुबह देर से उठता है,
मैं कहता हूँ — “आलसी है!”
पर क्या मैंने कभी सोचा —
उसकी नींद मेरी समय-सारिणी से ज़्यादा सच्ची हो सकती है?
वो जब देर तक खेलता है,
मैं कहता हूँ — “बर्बाद हो रहा है!”
पर क्या मैंने कभी पूछा —
क्या यही खेल उसका साधन है जीवन को समझने का?
मैं उसे ‘सीख’ देता हूँ,
बिना यह जाने कि
उसकी आत्मा भी एक यात्री है —
जिसे अपने अनुभव खुद चुनने हैं।
कभी-कभी,
मैं चाहता हूँ कि वो मुझसे डरे,
मेरी इज़्ज़त करे…
पर क्या डर और इज़्ज़त एक ही सिक्के के दो पहलू हैं?
फिर एक दिन मौन में उत्तर मिला:
“जो फूल को हर पल काटे, वो माली नहीं होता।
जो उसे सूरज, जल और स्पर्श दे — वही पोषक है।
बच्चा कोई मिट्टी नहीं, जिसे तेरे साँचे में ढाल दिया जाए।
वो तो बीज है — अपनी दिशा खुद चुनेगा।
तेरा धर्म है बस — उसे प्रेम देना।”
पालन-पोषण कोई नियंत्रण नहीं,
यह एक समर्पण है —
जहाँ हर ‘नहीं’ से पहले एक ‘प्रेम’ बोला जाए।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




