गूंगे और बहरे हो गए हैं अधिकारी।
जांच में करते हैं नोटों पर सवारी।
ईमानदारी का लेवल लगा कर रहे हस्ताक्षर।
कर रखी है न्याय व्यवस्था जर्जर।
झूठे, मक्कार, बेईमानों के दांव पेच।
आम आदमी कहां समझ पाए।
बैठे हैं सरकारी कुर्सियों पर।
तभी तो करोड़ों के घोटाले कर पाए।