गुज़रा वक़्त वापिस नहीं आता
रिश्ता कोई भी हो
उसे निभाया नहीं,जिया जाता है
जरूरत और मजबूरी निभाना सिखाती है
प्यार और जिम्मेदारी जीना सिखाती है
उम्र बीत जाती हैं
रिश्ते समझ नहीं आ पाते
जो समझ आते हैं
उन्हें हम समझ नहीं आते
विदा होने का जब समय आता है
ज़िन्दगी से शिकवा होने लगता है
जो रिश्ते सिर्फ निभाए होते हैं
उन्हीं के साथ जीने का मन करने लगता है
नज़रों में जिनकी कदर नहीं थी
उनकी अहमियत समझ आ जाती है
गुज़रा वक़्त वापिस लाना चाहते हैं
मिलता है सिर्फ़ पछतावे का मौका क्योंकि कुछ सही करने का मौक़ा ज़िन्दगी कहाँ दिया करती है..
वन्दना सूद