शिक्षा दिक्षा यातायात,
स्वास्थ्य गइल अब गांव के हाट ।
चल सांवरिया छोड़ शहरिया,
फिर से गांव बसाव न।
मन्दी में सब बन्दी भइलें,
अपने काम जमाव न।।
स्वच्छ वायु और शुद्ध पेयजल,
दुर्लभ भइल ई दैवी थाती।
भीड़ भाड़ संग शोर बढ़ल बा,
आठो पहर और दिन राती।
शहर कहर से बाहर निकल,
शहरी सोच दुराव न।।
मानव मानव होड़ मचल बा,
जेके देख उहे गरल बा।
छल प्रपंच आकंठ समाहित,
नकली चेहरा सकल भरल बा।
गांव के सूघर मिलन प्रेम,
नैसर्गिक सुख के पाव न।।
गांव छोड़ जब शहर में अइल,
गांव के हालत खस्ता कइल।
शहरी साधन पर भार बढ़ा के,
मनई के जिन्दगी सस्ता कइल।
उजरल गांव आबाद करा तूं,
सूखल वन हरियाव न।।
जीवन यापन के सगरी चीज्जू,
ई गउवें से आवेला।
सब कुछ गउवें में होखे ला,
गउवें शहर जियावे ला।
शहरी साधन गांव में करि के,
गउवें शहर बनाव न।।
गांव शहर के दूरी सिमटल,
आव जा ई जरूरी सिमटल।
गांव गांव अस भइल व्यवस्था,
अनपढ़ नाहिं मजबूरी सिमटल।
सुदृढ़ बा संचार व्यवस्था ,
गउवें से बतियाव न।।
होई गांव के शासन अपना,
सच होई ई बापू के सपना।
निर्मल गांव हरियरे छांव,
ई हे त बा हमरो कलपना।
गांव चलें सहकार करा तूं,
अब निर्मल गांव बनाव न।।
कृषि और पशुपालन धन्धा,
मन्दी में ना होई मन्दा।
जीये बदे जरूरी बा ई,
गउवें के ह ई दूवो धन्धा ।
गोधन और गोबर धन कीन,
हलधर किशन कहाव न।।
बाग बगइचा निबिया छांव,
ई सब होई हमरे गांव।
प्राण वायु लेवे के खातिर,
दौड़ दौड़ सब आई गांव।
अलख जगाव तुहऊं चल के,
स्वास्थ्य लाभ करवाव न।।
-कृष्ण मुरारी पाण्डेय