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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

इधर उधर

अगर लग जाती है तो लत नहीं जाती
लाख कोशिश करें आदत नहीं जाती।

अपना किरदार अक्सर हमें आइना दिखाता है
जिंदगी मे हमारे सामने एसा भी वक्त आता है

आपकी अदाकारी बहुत खूब है
आपकी वफादारी बहुत खूब है
आपका हो जाता है मिलता है जो
आपकी तो हयादारी बहुत खूब है।

आपसे मिलकर हमेशा अपने से दूर गए हम
बेखुदी इतनी बढ़ी कि खुद को भूल गए हम।

सब कुछ उसको दे दिया फिर भी हम ख़ामोश हैं
दुनिया की नजरों में फिर भी अहसान फरामोश हैं ।

उन्हें हम अपने जख्म दिखाएं कहां तक दास
जिन्होंने कुछ भी ना देखने की कसम खाई है।

मन्दिर भी जाते हैं हम मस्जिद भी जाते हैं
भगवान के दर पे अपना सर को झुकाते हैं।

कोई भी फूल खिलता है उसे तोड़ा नहीं करते
गर सजदे में है कोई तो उसे रोका नहीं करते...

हर जगह बैठे हुए हैं मिट्टी के पुतले
मन हैं काले पर तन हैं बहुत उजले
दम खम नहीं बस इनकी अकड़ है
शेर ये कागजी दास सब हैं खोखले

अच्छी तरह से आपको हम जान गए हैं
आप क्या हैं अच्छी तरह पहचान गए हैं
लोग जो कहते हैं शायद सब कुछ झूठ है
आप बड़े तीरअंदाज हैं ये हम मान गए हैं ।


प्यार का जबसे प्याला हो गया है
बहुत मीठा हर निवाला हो गया है
सारा अंधेरा छंट गया है दास अब
हर तरफ ही यूं उजाला हो गया है।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

रीना कुमारी प्रजापत said

Bahut sundar rachna

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

वाह अपना ज़ख्म उन्हें कहां तक दिखाएं, जिन्होंने कुछ भी न देखने की कसमें खायी है। बहुत बढ़िया सर जी।

शिवचरण दास said

बहुत बहुत आभार अभिवादन रीना जी एवं मनोज जी

वन्दना सूद said

शानदार रचना 👏👏👌👌

शिवचरण दास said

आभार अभिवादन वन्दना जी

पवन कुमार "क्षितिज" said

बात मेहनत किए हो सर जी रचना में..👌👌👏

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