तलवार ना बंदूक ना कोई हथियार किसी के हाथ में
ताज्जुब है लोग फिर भी लुट रहे हैँ भरे बाजार में
अपने ही मोबाईल में बनकर आफत आते हैं वो सब
रोज किस्से छपते हैं कई ये आजकल अख़बार में
कोई बनता है पुलिस तो कोई बनता है ईडी अफसर
खुद हाथों फंस रहा आदमी हुश्न के बस जाल में
जानकर भी अनजान सब भगवान भरोसे बैठे हैँ यहाँ
खून और पसीना पिस रहा है आज हिंदुस्तान में
क्या करें जाएँ कहाँ हम फरियाद अब किससे करेंगे
दास दुनियां फिर भी ख़ुश वक्त की रफ़्तार में II