तेरी आँखों में जब झलकता है चाँद,
तो आकाश भी होता है लज्जित,
तेरी मुस्कान की उजली आभा से,
प्रभात का सूरज हो जाता है विस्मित।
तेरी चंचल चाल की रुनझुन से,
मानो वसंत उतर आया धरा पर,
तेरे केशों की छाया में बसी शीतलता,
जैसे सावन ठहर गया हो घटा पर।
तेरे अधरों की कोमल लाली,
गुलाब को भी देती है चुनौती,
तेरी मधुर वाणी की गूँज में,
कान्हा की बंसी-सी है मधुरता अनूठी।
हे प्रियतमा! तेरे सौन्दर्य की पूजा में,
मेरा हर श्वास समर्पित है,
तू ही है काव्य, तू ही है गान,
तू ही मेरे हृदय का सम्पूर्ण स्तवन है।
यही नहीं है!
सुनो तो प्रोफेसर,
मोहित हूँ तेरे व्यावहारिक हाव भाव पर,
तू ही मेरा मंदिर, तू ही मेरा उपवन है।
अभी ऐसे जाओ ना 'जाना' कहीं पर,
अभी तो बहुत कुछ है तुमसे कहना,
अपेक्षा करो या उपेक्षा,
ये शब्द, ये भाव
जो तुम तक पहुंच रहे हैं,
तेरी ही फरमाइश थी,
अब रुसवा न हो जाना,
जानकर कि मुझे मोह है तेरा।
इक पल और रुकोगे क्या?,
इन आँखों में बेचैनी है,
बहुत पल जो बीत गए हैं,
तुझे देखे बगैर,
तो ये भी जान ही लो,
कि पल एक हो, अनेक हों,
तेरी तस्वीर जो छपी है आँखों में,
उतना ही काफी है यूँ तो जीवन में,
लेकिन दिल को फितूर कुछ और है,
ये नहीं मानता तुझे और देखे बिना।
अगर जाने का सोच रहे हो,
इतना पढ़कर,
तो मत जाओ ना,
क्यूकि अभी बहुत कुछ कहना बाकी है,
तुम्हारा यूँ आना,
खुदा की मर्जी है, नहीं पता,
मगर आकर खुदा जो बने हो,
बड़े कमाल के बने हो।
पतझड़ को जीवन का अंत समझ,
मैं जो पहाड़ों की और जा रहा था,
तब तुम्हारा आना, आकर आवाज देना,
मेरी मूक वाणी को अलफ़ाज़ देना,
साथ देना और यूँ इस कदर खड़े रहना,
क्यों नहीं था जीवन में पहले,
पतझड़ के आने से,
ये पहले जो होता,
तो पतझड़ ना आता,
मगर अब भी कोई, बुराई नहीं है,
पतझड़ जो आये तो आते रहेंगे,
मगर तुम जो आये हो 'जाना' कहीं ना,
यूँ बेचैन होकर के रहता हूँ हर पल,
यूँ बीमार बीमार लगता हूँ खुद में,
मगर है ये बस एक तड़प तुझको पाने की,
खुशबू जो ये यूँ महकती है इत उत,
तुम्हारे ही आने का पैगाम लाती,
मगर दिल ये बेचैन होता है मेरा,
खबर है क्या तुमको?, तुमको पता है क्या?
ऐसे ना जाओ यूँ बेचैन करके,
गठ्हर खताओं का हूँ मैंने माना,
मगर ये खतायें भी तेरी ही खातिर,
मगर तुम ये इल्जाम ना खुद पे लेना,
मेरी खतायें है, मेरी रहेंगी,
ना तुम तक कोई आंच आएगी 'जाना'।
क्या अब तुमने जाना,
मैं क्या कह रहा हूँ,
क्या अब तुमने जाना,
मुझे क्या हुआ है,
नहीं गर है जाना तो,
खुद से हूँ कहता,
मैं तुझको चाहूँ,
जी हाँ चाहता हूँ,
खबर तुझको हो तो,
फिर कुछ तो कहना,
जो न कह सको तो भी,
ना चुपचाप जाना,
क्या 'जाना' बनोगी तुम?,
क्या कहदूँ मैं 'जाना'?
सुनो अब तो 'जाना' बता भी दो मुझको,
क्या तुमने समझा है? क्या तुमने जाना?
🌹 अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' 🌹
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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