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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

सुनो तो प्रोफेसर

तेरी आँखों में जब झलकता है चाँद,
तो आकाश भी होता है लज्जित,
तेरी मुस्कान की उजली आभा से,
प्रभात का सूरज हो जाता है विस्मित।

तेरी चंचल चाल की रुनझुन से,
मानो वसंत उतर आया धरा पर,
तेरे केशों की छाया में बसी शीतलता,
जैसे सावन ठहर गया हो घटा पर।

तेरे अधरों की कोमल लाली,
गुलाब को भी देती है चुनौती,
तेरी मधुर वाणी की गूँज में,
कान्हा की बंसी-सी है मधुरता अनूठी।

हे प्रियतमा! तेरे सौन्दर्य की पूजा में,
मेरा हर श्वास समर्पित है,
तू ही है काव्य, तू ही है गान,
तू ही मेरे हृदय का सम्पूर्ण स्तवन है।

यही नहीं है!
सुनो तो प्रोफेसर,
मोहित हूँ तेरे व्यावहारिक हाव भाव पर,
तू ही मेरा मंदिर, तू ही मेरा उपवन है।

अभी ऐसे जाओ ना 'जाना' कहीं पर,
अभी तो बहुत कुछ है तुमसे कहना,
अपेक्षा करो या उपेक्षा,
ये शब्द, ये भाव
जो तुम तक पहुंच रहे हैं,
तेरी ही फरमाइश थी,
अब रुसवा न हो जाना,
जानकर कि मुझे मोह है तेरा।

इक पल और रुकोगे क्या?,
इन आँखों में बेचैनी है,
बहुत पल जो बीत गए हैं,
तुझे देखे बगैर,
तो ये भी जान ही लो,
कि पल एक हो, अनेक हों,
तेरी तस्वीर जो छपी है आँखों में,
उतना ही काफी है यूँ तो जीवन में,
लेकिन दिल को फितूर कुछ और है,
ये नहीं मानता तुझे और देखे बिना।

अगर जाने का सोच रहे हो,
इतना पढ़कर,
तो मत जाओ ना,
क्यूकि अभी बहुत कुछ कहना बाकी है,
तुम्हारा यूँ आना,
खुदा की मर्जी है, नहीं पता,
मगर आकर खुदा जो बने हो,
बड़े कमाल के बने हो।

पतझड़ को जीवन का अंत समझ,
मैं जो पहाड़ों की और जा रहा था,
तब तुम्हारा आना, आकर आवाज देना,
मेरी मूक वाणी को अलफ़ाज़ देना,
साथ देना और यूँ इस कदर खड़े रहना,
क्यों नहीं था जीवन में पहले,
पतझड़ के आने से,
ये पहले जो होता,
तो पतझड़ ना आता,
मगर अब भी कोई, बुराई नहीं है,
पतझड़ जो आये तो आते रहेंगे,
मगर तुम जो आये हो 'जाना' कहीं ना,

यूँ बेचैन होकर के रहता हूँ हर पल,
यूँ बीमार बीमार लगता हूँ खुद में,
मगर है ये बस एक तड़प तुझको पाने की,
खुशबू जो ये यूँ महकती है इत उत,
तुम्हारे ही आने का पैगाम लाती,
मगर दिल ये बेचैन होता है मेरा,
खबर है क्या तुमको?, तुमको पता है क्या?
ऐसे ना जाओ यूँ बेचैन करके,
गठ्हर खताओं का हूँ मैंने माना,
मगर ये खतायें भी तेरी ही खातिर,
मगर तुम ये इल्जाम ना खुद पे लेना,
मेरी खतायें है, मेरी रहेंगी,
ना तुम तक कोई आंच आएगी 'जाना'।

क्या अब तुमने जाना,
मैं क्या कह रहा हूँ,
क्या अब तुमने जाना,
मुझे क्या हुआ है,
नहीं गर है जाना तो,
खुद से हूँ कहता,
मैं तुझको चाहूँ,
जी हाँ चाहता हूँ,
खबर तुझको हो तो,
फिर कुछ तो कहना,
जो न कह सको तो भी,
ना चुपचाप जाना,
क्या 'जाना' बनोगी तुम?,
क्या कहदूँ मैं 'जाना'?
सुनो अब तो 'जाना' बता भी दो मुझको,
क्या तुमने समझा है? क्या तुमने जाना?
🌹 अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' 🌹


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (8)

+

प्रभाकर said

बहुत दिन के बाद आप को पढ़ रहा हूँ अशोकजी इंतजार का फल मिटा ही होता है👌 But कुछ सवाल है वह हम बाद में Discuss करते है 😊आपको प्रणाम 👏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आभार आदरणीय प्रभाकर सर, सर्वप्रथम आपको सादर प्रणाम,
आपकी समीक्षा पाकर धन्य होगया,
अवस्य आदरणीय मुझे आपके सवालों का इंतज़ार रहेगा, जब आप फुर्सत में हों कृपया अपने सवालों से अवगत कराने के साथ साथ स्नेहशीसों से आशीर्वाद देकर कृतज्ञ करने की कृपा कीजियेगा
पुनः सादर प्रणाम आदरणीय

वन्दना सूद said

बहुत समय बाद आपका लेखन पढ़कर अच्छा लगा 👌👌और बहुत गहराई से लिखा 👏👏बहुत सवाल हैं आपके पर ये किसके लिए और क्यों हैं ये नहीं जाना हमनें 😊

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय Ma'am, सर्वप्रथम आपको सादर प्रणाम एवं समीक्षा के लिए आपका बहुत आभार,
आपने रचना को समय दिया एवं प्रश्नों के साथ सूचित किया रचना को लिखना सार्थक होगया,
दरअसल ये इस तरह मुझे पोस्ट करना चाहिए था या नहीं मुझे इस विषय में संसय है, लेकिन केवल अभिव्यक्ति है और उनकी फरमाइश थी की आप पहले तो बहुत लिखते थे, अमरउजाला पर फिर यहाँ भी, अब क्या हो गया है, क्या स्वास्थ्य इतना हावी हो गया है कि एक एक करके सब चीज़ें छोड़ते जा रहे हो, या फिर प्रेम में कोई कमी है, या अब मेरे लिए कुछ लिखने का मन नहीं करता है जो इतनी बार कहने के बाद भी मेरे लिए कुछ लिखा नहीं, प्रोफेसर में उन्हें प्यार से सम्बोधित करता हूँ, उनके इस तरह कहने से कुछ देर के लिए सन्न रह गया कि हाँ छोटी छोटी खुशियां बहुत मायने रखती हैं, इसलिए ये उनको समर्पित करते हुए लिखा और टाइटल को भी इसी हिसाब से रखा 'सुनो तो प्रोफेसर' जैसे टाइटल के माध्यम से भी मैं उन्हें कहना चाहता हूँ सुनो तो प्रोफेसर मैं लिख सकता हूँ आपके लिए चंद पंक्तियाँ नहीं कुछ किताबें भी कुछ भी कम नहीं है न स्वास्थ का माज़रा है, मैं हर स्थिति में तुम्हारे साथ, तुम्हारे जीवन में आने, मुझको और मेरे जीवन को पूर्ण करने के लिए, कृतज्ञ हूँ और उस सब के साथ साथ प्रेम जो है उस सब पर लिख सकता हूँ, बस ये वही सवाल हैं उनसे पुनरावृत्ति करते हुए कि इस उम्र के पड़ाव पर क्या यह पुनः संभव है,
क्या वही सब मैं दोबारा से पूंछू तो जबाब वही रहेंगे या बदल जाएंगे, यही कारण है मेने इस रचना को सिर्फ लिखा है, और पोस्ट उनसे ही करवाया है ताकि उन्हें एहसास रहे उनके बिना मैं, मेरी रचना या कोई भी अन्य कार्य पूर्ण नहीं है....तो यह अभिव्यक्ति प्रोफेसर साहिबा के कहने पर उन्ही के लिए लिखी है.....आशा करता हूँ आप अब उन सारे प्रश्नों के उत्तर जान पायी होंगी जो प्रश्न आपके थे।
इतने सुन्दर प्रश्नों को पूछकर मुझे उत्तर के माध्यम से रचना के अलग कमेंट के माध्यम से भी उनके लिए भावनाओं को पुनः अभिव्यक्त करने का मौका देने के लिए आभार आदरणीय।

मुझे थोड़ा संसय है की मुझे इस रचना को यहाँ पोस्ट करना चाहिए था या नहीं, लेकिन उनके लिए कुछ भी, फिर भी प्रबुद्ध सज्जनों एवं आपकी राय मायने रखती है की इस प्रकार की अभिव्यक्ति को पटल पर पोस्ट करना अनुचित तो नहीं है।

आपको सादर प्रणाम।

रीना कुमारी प्रजापत said

Haaye Haaye Haaye
वाह क्या खूब लिखा है सच में पतझड़ के आने से पहले ही कोई ऐसा आ जाए जिंदगी में तो पतझड़ ही न आए .. सच में बहुत खूबसूरत। माशाअल्लाह आप ही लिख सकते है इतना खूबसूरत और फिर जब इतना खूबसूरत लिखा हो तो कैसे आपकी उन प्रोफेसर साहिबा को नहीं पता चलेगा कि आपका क्या कहना है वो समझ ही गई होगी हमे पूरा यकीन है और नहीं समझी हो तो हमे बताइए हम आपकी हेल्प करेंगे। वैसे आपको मिली कहां ये प्रोफेसर ? आपके कॉलेज में... वाह! सच में बहुत ही लाजवाब है आपकी प्रोफेसर ... हम शुक्रिया करते है उनका कि वो आपकी ज़िन्दगी में आई ... उनके आने से आप कितने खुश है ये हमे आपकी इस रचना में साफ साफ दिखाई दे रहा है आपकी, आपकी इस रचना की, आपकी कलम की और आपकी उन प्रोफेसर साहिबा की जितनी तारीफ करे उतनी ही कम है ... असल तो ये है कि हम उनकी तारीफ के लायक ही नहीं है👌👌👍👍💐💐🙏🙏आपको और आपकी प्रोफेसर जी को हमारा नमस्कार🙏🙏 और रही बात की आपको क्या हुआ है तो हमे लग रहा है कि आपको प्यार हो गया है 😃😃 क्षमा कीजियेगा अगर अनजाने में कुछ गुस्ताखी भरे अल्फ़ाज़ निकल गए हो आपके, आपकी रचना के और आपकी प्रोफेसर जी के लिए तो🙏🙏बाकी आपकी रचना के आगे हम नतमस्तक है बहुत अच्छा लगा आज कई दिनों बाद आपको यहां देखकर, सभी को आपका बहुत इंतजार रहता हुआ यहां

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय Ma'am, को सादर प्रणाम, आपकी प्रतिक्रिया एवं समीक्षा के लिए ह्रदय से आभारी हूँ,
आपकी दीर्घ समीक्षा ने रचना के लेखन के महत्व को पूर्ण कर दिया।

मुझे, मेरी रचना, जिन्होंने इसे पोस्ट किया उनको या यूँ कहें प्रोफेसर साहिबा को इतना प्यार और सम्मान देने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ। आपका प्रणाम स्नेह और सम्मान उन तक पहुँच गया है, और वो आपको आभार व्यक्त कर रही हैं,

वैसे आपको मिली कहां ये प्रोफेसर ?
हर व्यक्ति के जीवन में एक प्रोफेसर होता है वो उसे कहीं ना कहीं मिल जाता है, मुझे भी वो ऐसे ही मिलीं थीं भटकते भटकते टकरा गयीं जब दुनिया से परेशां होकर निराश था

पुनः इस खूबसूरत समीक्षा के लिए आपका आभार एवं सादर प्रणाम आदरणीय Ma'am

सुभाष कुमार यादव said

प्रिय के प्रति अपार प्रेम और उन प्रेम भावों की इतनी सुंदर अभिव्यक्ति अद्भुत है। आपकी लेखनी और प्रिय के प्रति प्रेम भाव के मणिकांचन संयोग से रचना इतनी आकर्षक बन गई है कि पाठक के हृदय को स्पर्श कर तरंगायित कर देती है। उत्तम रचना। सादर प्रणाम पचौरी सर।👌👌🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय यादव आपकी प्रतिक्रिया पाकर मैं धन्य होगया, आपकी प्रतिक्रिया लिखने के लिए प्रेरित करती हैं आपको सादर प्रणाम सर

श्रेयसी said

वाह क्या कहने हमेशा की तरह लाज़बाव। मैं निःशब्द हूंँ मगर इतना लिखूंँगी की आप ऐसे हीं हमेशा लिखते रहें। सादर प्रणाम अशोक जी 🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय Ma'am, को रचना को पढ़ने, और प्रतक्रिया लायक पाने के लिए, एवं प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार, आपका आशीर्वाद इसी तरह लिखते रहने के लिए प्रेरित करता है,

आप सभी प्रबुद्धजनों की समीक्षाएं ही मुझ नासमझ और अल्पबुद्धि को लेखन से जोड़े हुए हैं - मुझे नहीं पता रचनाओं में व्याकरण से सम्बंधित त्रुटियों के बारे में ज्ञान के अभाव में भी बस भावों को कलमबद्ध कर देता हूँ,

आप सभी से अनुरोध है यदि कहीं त्रुटियां रह जाएँ तो उनके लिए क्षमा करते हुए त्रुटियों को संज्ञान में लाकर उनको सही करने के सन्दर्भ में साथ देंगे तो मुझे भी आप लोगों के माध्यम से भाषा और व्याकरण का ज्ञान थोड़ा बहुत मिल पायेगा,

पुनः आदरणीय Ma'am, को धन्यवाद सहित सादर प्रणाम

सुप्रिया साहू said

प्रोफेसर साहिबा के लिए इतनी अच्छी कविता पढ़कर मज़ा आ गया, अब आपने उनसे इतने सारे प्रश्न किए हैं तो यकीनन आपको जवाब भी मिल गए होंगे, प्रेमभाव से परिपूर्ण आपके द्वारा प्रोफेसर साहिबा के लिए झलकता हुआ प्यार आपार है, मुझे तो नहीं पता वो कैसी हैं पर यकीन है कि वो बहुत सुंदर, सुशील होंगी, वाकई रचना बेहद खूबसूरत और शानदार है सर 👌👌, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

Aapko kavita pasand aayi aapka aabhari hun, mujhey prasannta huyi ki aapko professor saahiba aur unke liye likhi huyi rachna pasand aayi hai, professor saahiba ko bhi bahut pasand aayi unke liye jo likha mene
Ji mujhey mere sare sawalo ke jabab mil gaye hain aadarneey, sundarta aur susheel insaan apne gunon se hota hai, unme aise apaar gun hain...unki taareef aur meri hausalaafjaayi ke liye aapka bahut bahut abhaar evam aapko bhi saadar pranam...🙏🙏

वन्दना सूद said

अशोक जी
लेखक की सबसे खूबसूरत खूबी यही है कि वो कहीं भी,कभी भी और कैसे भी अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर सकता है उसके भाव तो हवा की ऐसी धारा है जिसमें हर कोई अपने आप की ढूँढ सकता है इसलिए ये संशय एक लेखक के लिए ग़लत है कि उसे लिखने के लिए कोई जगह उचित नहीं है 🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

Sanshay ko dur karne ke liye aadarneey Ma'am ka abhaari hun.

Aapke vichaar bahut darshnik evam gahre hain...
Aapko saadar pranam 🙏🙏

कमलकांत घिरी said

वाह वाह वाह! क्या कहने सर जी बेहद खूबसूरत, बेहद शानदार रचना सर जी ये गीत दिल को छू गया, बहुत दिनों बाद लिखंतु में आया और मेरा आना आपकी गजल पढ़कर सफल हुआ😊 आपको मेरा सादर प्रणाम 🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

Sarvpratham aapko saadar pranaam aadarneey Kant sir 🙏🙏.
Aapki pratikriya se man ko prasannata mili, in bhavon se meri rachna ka likhna sarthak hogaya...
Aapka sadaiv abhaari...

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