कभी करुणा, कभी श्रृंगार लिखता हूँ,
हृदय के भावों का, उद्गार लिखता हूँ।
न छंद का ज्ञान, न शैली की पहचान,
लिखता हूँ, शब्दों से दिल के अरमान,
जो बैठ कर भीतर रोती रहती है उस,
विरहिणी की करुण पुकार लिखता हूँ,
हृदय के भावों का, उद्गार लिखता हूँ।
देखता जब निरीह पर किए अत्याचार,
उनका मौन रुदन और करुण चीत्कार,
उनके सिसकियों और आहों से बिलख,
क्रोध की ज्वाला से, हुंकार लिखता हूँ,
हृदय के भावों का, उद्गार लिखता हूँ।
बसा कर हृदय में उनकी प्यारी मूरत,
न कोई था न कोई है उनसे खूबसूरत,
अर्पित करूँ तो क्या, है बस भाव-अश्रु,
अश्रु-स्याही से प्रभु, आभार लिखता हूँ,
हृदय के भावों का, उद्गार लिखता हूँ।
कभी करुणा, कभी श्रृंगार लिखता हूँ,
हृदय के भावों का, उद्गार लिखता हूँ।
🖊️सुभाष कुमार यादव

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




