मैंने चाहा प्यार, हो गई आँखें स्याही
पता नही था, हिस्से में अजनबी राही
कौन बुझायेगा तपते होंठों की प्यास
गुमसुम रातों में व्याकुलता थी साही
एक खुशी की मन्नत मांगी ईष्ट देव से
दयालू होंठ नही मुस्काये ना कारवाई
पीड़ा बढ़ती रही साथ आये कोई मेरे
यही सोचते आँख लगी, उदासी पाई
कलम उँगलियों के बीच कशमकश में
लिखता दीप जलाओ मनाओ दीवाली
याचक बनना छोड़ो कर्म करो 'उपदेश'
हर चेहरे पर व्याप्त मिलेगी प्रिय लाली
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद