मालुम नहीं मेरे अपनों को,
कि लिखती हूॅं मैं कविताएं, ग़ज़लें।
मालुम पड़ा उन्हें ग़र कभी ,
तो लिखने ना देंगे वो मुझे।
आज दस बरस बीत गए पर अभी तक
अपनी कविताओं की भनक ना लगने दी
मैंने उन्हें,
जब तक कि लेखन में कोई सम्मान ना मिल जाता
मुझे तब तक ना बताऊंगी मैं उन्हें।
मिला मुझे कोई अवॉर्ड और तब पता चले उन्हें
मेरी कविताओं का,
तो वो ना रोकेंगे मुझे और ग़र्व करेंगे मुझ पे।
पर बिना इन सबके पहले पता चला उन्हें,
तो वो लिखने से रोकेंगे मुझे।
फिलहाल अपनों से अपनी कविताओं को छुपाने
की पूरी कोशिश करती हूॅं,
डर है कहीं मेरी इस कला पर भी रोक ना लग जाए
क्योंकि इससे पहले मेरी तीन कलाओं पर
रोक लगा दी थी उन्होंने।
ऐसा नहीं कि वो मेरी खुशी चाहते नहीं
वो मुझसे बहुत प्यार करते हैं और मेरा भविष्य
संवारना चाहते हैं
इसलिए मेरी कलाओं पर रोक लगाते हैं,
क्योंकि उनकी नज़र में ये सब वक्त और पैसे
बिगाड़ने के जरिए हैं पैसे कमाने के नहीं।
पर मुझे उस दिन का इंतज़ार है
जब मिलेंगे मुझे अवॉर्ड,
हर ज़ुबान, हर जगह मेरा नाम होगा
तब बताऊंगी मैं उन्हें
क्योंकि फिर वो ना रोकेंगे मुझे।
🖊️ रीना कुमारी प्रजापत 🖊️