मां के हाथ का खाना शिवानी जैन एडवोकेट Byss
माँ के हाथ का खाना, घर का एहसास,
दूर कहीं भी हों, दिलाता है पास।
वो खुशबू रसोई की, मन को लुभाती,
जैसे बचपन की लोरी हमें सुनाती।
हर त्यौहार, हर खुशी का है ये आधार,
परिवार को जोड़े रखने का ये है प्यार।
उनके हाथों से परोसा गया हर ग्रास,
देता है जीवन को एक नया उल्लास।
माँ के हाथ का खाना, परंपरा का मान,
यह तो है संस्कृति, हमारी पहचान।
हर व्यंजन में छिपा है स्नेह का बंधन,
जो पीढ़ियों से चला आता है अभिनंदन।
ये स्वाद नहीं, ये तो है रिश्तों की डोर,
जो बांधे रखती है हर मन को हर ओर।
माँ का हर भोजन है अमृत समान,
देता है जीवन को अद्भुत सम्मान।