गर तुम समझ न पाये तो कोई तो बात नहीं
मगर बात जो तुम समझे वाकई वो बात नहीं
न जाने तुमको क्या हुआ उस साहिर की सोहबत से
चराग़ तुमने ख़ुद बुझाए कोई झंझावात नहीं
यहां की फ़िज़ा अब भी है वैसी ही जैसी थी कभी
ये शबनम सी बूंँदें आंँसू हैं फूलों की झूठे जज़्बात नहीं
दूसरों को जानने से पहले जरूरी है स्वयं को जानना
बुद्धिजीवियों की संगति बग़ैर होगी तुमको तुमसे हीं मुलाक़ात नहीं