एहसास का हमें तेरे बस आसरा रहा ,
लफ़्ज़ों में ढूंढते रहे दिल के सुकून को ।
ज़िंदगी कैक्टस हो जितनी भी ,
तेरा एहसास फूल जैसा है ।
एक एहसास थम गया दिल भी ,
क्या था लिखना जो लिख नहीं पाये।
एहसास को अपने अल्फ़ाज़ देना ,
ख़ामोशिया दिल में चुभती बहुत हैं ।
इतने एहसास दर्द देते हैं ,
दर्द होता है सांस लेने में ।
कहां तुझसे कोई भी हम,
उम्मीद रखते हैं ।
तेरा एहसास भी
ख़ुद तक महदूद रखते हैं ।।
लफ़ज़ों में पिरो लेते हैं
एहसास के मोती ,
इज़्हार- ए -तमन्ना का
सलीक़ा नहीं आता ।
----डाॅ फौज़िया नसीम शाद