हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम
राेज गुलाब का फूल न दिखाओ तुम
ऐसी ये खराब खाेपडी है
रहने काे बगैर छत कि झाेपडी है
उसी में जैस तैसे रहता हूं
ऐसी दुख किसी काे न हाे
राेज यही कहता हूं
मिले थे कभी ये बात काे दिमाग से भगाओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम
जब गरज कर आसमान से बारिस आता है
शिर पावं और बदन भीग जाता है
उसके बा द मुझे ठन्ड भी लगता है
थर थर थर सारा शरीर कांपता है
मेरे पास क्याें आती हाे न आओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम
कई कई दिन भूखा न पीता न खाता हूं
कभी बस अड्डे कभी रेलवे स्टेसन जाता हूं
शाम काे वहीं ठन्डी फर्स पर साेता हूं
साेना क्या था रात भर मैं राेता हूं
मेरे से प्यार न जताओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम
घर में न काेई शब्जी है न भिन्डी है
न धनियां मिर्च न टिन्डी है
क्या खाओगी न राेटी न दाल है
मेरी जां बहुत बुरा हाल है
मुझसे नहीं किसी और से दिल लगाओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम
अगर भूल से मेरी पत्नी बनाेगी
गर-गहने क्या पहनाेगी
मेरे पास न साेना चांदी पितल है
मन के अन्दर न ताे थाेडा शीतल है
अपना रास्ता खुद अभी से बनाओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम
ओंठ में लिपिस्टीक पावं में सैन्डल कैसे लगाओगी
दुख के सिवा मेरे से कुछ भी न तुम पाओगी
कपडे भी नहीं न साडी ब्लाउज मेक्सी है
कैसे घुमाेगी-फिराेगी न गाडी न टेक्सी है
मैं बहुत दुखी हूं जरा तरस खाओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम.......
----नेत्र प्रसाद गौतम