Newसभी पाठकों एवं रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि बागी बानी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हुए
उनके बेबाक एवं शानदार गानों को अवश्य सुनें - आपको पसंद आएं तो लाइक,शेयर एवं कमेंट करें Channel Link यहाँ है

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

Newसभी पाठकों एवं रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि बागी बानी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हुए
उनके बेबाक एवं शानदार गानों को अवश्य सुनें - आपको पसंद आएं तो लाइक,शेयर एवं कमेंट करें Channel Link यहाँ है

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

हे प्रिय भूल जाओ - नेत्र प्रसाद गौतम

हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम
राेज गुलाब का फूल न दिखाओ तुम

ऐसी ये खराब खाेपडी है
रहने काे बगैर छत कि झाेपडी है

उसी में जैस तैसे रहता हूं
ऐसी दुख किसी काे न हाे
राेज यही कहता हूं
मिले थे कभी ये बात काे दिमाग से भगाओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम

जब गरज कर आसमान से बारिस आता है
शिर पावं और बदन भीग जाता है
उसके बा द मुझे ठन्ड भी लगता है
थर थर थर सारा शरीर कांपता है
मेरे पास क्याें आती हाे न आओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम

कई कई दिन भूखा न पीता न खाता हूं
कभी बस अड्डे कभी रेलवे स्टेसन जाता हूं
शाम काे वहीं ठन्डी फर्स पर साेता हूं
साेना क्या था रात भर मैं राेता हूं
मेरे से प्यार न जताओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम

घर में न काेई शब्जी है न भिन्डी है
न धनियां मिर्च न टिन्डी है
क्या खाओगी न राेटी न दाल है
मेरी जां बहुत बुरा हाल है
मुझसे नहीं किसी और से दिल लगाओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम

अगर भूल से मेरी पत्नी बनाेगी
गर-गहने क्या पहनाेगी
मेरे पास न साेना चांदी पितल है
मन के अन्दर न ताे थाेडा शीतल है
अपना रास्ता खुद अभी से बनाओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम

ओंठ में लिपिस्टीक पावं में सैन्डल कैसे लगाओगी
दुख के सिवा मेरे से कुछ भी न तुम पाओगी
कपडे भी नहीं न साडी ब्लाउज मेक्सी है
कैसे घुमाेगी-फिराेगी न गाडी न टेक्सी है
मैं बहुत दुखी हूं जरा तरस खाओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम
हे प्रिय मुझे अब भूल जाओ तुम.......

----नेत्र प्रसाद गौतम




समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Kavi ka hriday bahut hi pavitra hai..bahut hi shandaar kavita jise mazedaar bhi bahichak kaha ja skta hai

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Pranaam sweekar karein

Ankush Gupta said

Bahut khoob bhindi tindi ityadi shabdon ka prayog hasya ke sath sath rachna ko sundar bhi bana raha h

फ़िज़ा said

Waah kya sundar rachna likhi h kavi hriday ka imandari purn chitran..

Kapil Kumar said

Adhbhut Bahut Sundar Rachna

कविताएं - शायरी - ग़ज़ल श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


© 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन