हास्य कविता : पेट भर खाओ....
सुबह चार बजे उठ
कर जागना
फिर जाग कर काफी
दूर भागना
खुदा न खासता यूंही
बेकार में मरना
अगेरा - वगेरा
एक्सरसाइज करना
ये तो न साहस
न कुछ दम है
ये सभी बेकूफी
भरा कदम है
हे मेरे दोस्तों मछली
हो या चिकन हो
अंडे का आमलेट
हो या फिर मटन हो
जी भर कर पेट में
ठूंस ठूंस कर खाओ
फिर मजे के साथ
बिस्तर पर सो जाओ
सुबह चार बजे नहीं
ग्यारह बजे उठ जाओ
फिर जितना खा
सकते हो मजे से खाओ
जिंदगी में क्या रखा ?
कुछ भी तो नहीं
जन्मे हम यहीं
मरेंगे भी यहीं
एक्सरसाइज करने वाले
करके भी क्या करेंगे ?
आखिर वे लोग
भी तो एक दिन मरेंगे
अगर मरना ही है तो
टेंशन क्यों लेना ?
अपने इस शरीर को
दुख भी क्यों देना ?
बास हर बखत
खाते रहो
जो कुछ मिले
चबाते रहो
अगर शरीर मोटा
होता है तो होने दो
चल फिर न सके तो
ये शरीर को सोने दो
वजन बढ़ेगा तो
वजन ही बढ़ेगा
अरे भाई तुम्हें
क्या फरक पड़ेगा ?
अगर मोटापे से
मौत आई आने दो
ये शरीर तो एक दिन
जाना है इसे जाने दो
ज्यादा जी कर भी
क्या करना है ?
सभी को किसी न किसी
दिन तो मरना है
सभी को किसी न किसी
दिन तो मरना है.......

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




