आँखे बोझिल हो रही चलो ख्वाब देखते।
हकीकत में न हुई तबियत खराब देखते।।
बादल मेहमान बने हवाएं अगवानी लेती।
पेड झूमने लगे वातावरण में दबाव देखते।।
कड़कती बिजली आकाशवाणी कर रही।
बारिश आने को है उसका शबाब देखते।।
राहत का इंतजार जल्दी खत्म नही होगा।
इसी तरह 'उपदेश' डरावने ख्वाब देखते।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद