( राम नरेश उज्ज्वल का नया गीत 'सन्नाटा बुनता हूँ ')
सन्नाटा बुनता हूँ
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सन्नाटे में बैठा हूँ सन्नाटा बुनता हूँ।
गीत ग़ज़ल कविताओं की मैं रचना करता हूँ ।।
बदल रहा है क्या क्या हर पल देख रहा हूँ मैं,
कैसे सुधरेगा अब यह जग सोच रहा हूँ मैं,
एक चना तो भाड़ कभी भी फोड़ न पाएगा,
गंदी आदत कोई जल्दी छोड़ न पाएगा,
परिवर्तन लाने की लिख कर कोशिश करता हूँ।
सन्नाटे में बैठा हूँ सन्नाटा बुनता हूँ ।।
दया धर्म कर्तव्य अहिंसा त्याग तपस्या गायब,
क्रोध मोह निर्दयता हिंसा झूठ डकैती नायब,
आतंकी की तूती बोले प्यार मुहब्बत रोए,
इज्ज़त भी बेइज्जत होकर अपनी इज्ज़त खोए,
लाज़ द्रौपदी की रखने को आगे बढ़ता हूँ ।
सन्नाटे में बैठा हूँ सन्नाटा बुनता हूँ ।।
धन-दौलत को सबने अपना ईश्वर माना है,
भावों की गठरी को मैंने अपना जाना है,
भाग्य भरोसे रहने वाले रोते रहते हैं ,
धरे हाथ पर हाथ आलसी सोते रहते हैं ,
कवि हूँ कविता के बारे में चिन्तन करता हूँ।
सन्नाटे में बैठा हूँ सन्नाटा बुनता हूँ ।।
शोर-शराबे में सन्नाटा ऊबा करता है,
अपने में ही लीन हमेशा डूबा रहता है,
सन्नाटे में पढ़ने वाले बच्चे आते हैं,
कविता करने वाले कवि भी छंद बनाते हैं,
सरस्वती की तन्हा पूजा मैं भी करता हूँ ।
सन्नाटे में बैठा हूँ सन्नाटा बुनता हूँ ।।
खाली मन में भाव नए नित फूल खिलाते हैं,
जाने कितने शब्द चित्र पल में बन जाते हैं,
ऋतुओं का आना-जाना भी बहुत लुभाता है,
मधु रस जाने कैसे ख़ुद-ब-खुद भर जाता है,
मौलिकता की मधुर चाशनी मैं टपकाता हूँ ।
सन्नाटे में बैठा हूँ सन्नाटा बुनता हूँ ।।
जानें कितनी बातें आकर बात बनातीं हैं,
नीरवता में ज्ञान और विज्ञान पढ़ातीं हैं,
मौन साधना ताकत का अहसास दिलाती है,
निर्जनता ही जन हितकारी सृजन कराती है,
इसीलिए खामोशी से मैं लिखता रहता हूँ ।
सन्नाटे में बैठा हूँ सन्नाटा बुनता हूँ ।।
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~राम नरेश 'उज्ज्वल'
उज्ज्वल सदन
मुंशी खेड़ा,(अपोजिट एस-169
ट्रांसपोर्ट नगर), एल.डी.ए. कालोनी,
लखनऊ-226012
मो: 07071793707
ईमेल : ujjwal226009@gmail.com

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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