बचपन से ही मुझे सिखाया गया,
“हर काम का हिसाब रखो,
समय मत गँवाओ,
हर लम्हा क़ीमती है।”
मैंने मान लिया,
कापी के पन्नों में लिखती रही
कितने घंटे पढ़ाई,
कितनी बार असफल,
कितनी बार सफल।
पर किसी ने ये नहीं सिखाया
कि दिल के पन्नों पर भी कुछ लिखना होता है—
उस हँसी का, जो अचानक आई थी,
उस बारिश का, जिसने भीगकर मुझे
कुछ देर के लिए हल्का बना दिया था।
युवावस्था आई—
तो मैंने हिसाब रखा रिश्तों का,
“कौन कितना अपना है,
कौन कितना पराया,
किसने कितना दिया,
किसने कितना छीना।”
पर एक दिन अहसास हुआ—
इस जोड़-घटाव में
सब खोते चले गए।
फिर ज़िन्दगी ने मुझे कमरे के एक कोने में
अकेले बैठाकर कहा—
“तूने साँसों का हिसाब तो रखा,
पर उन्हें जिया कब?”
जैसे ज़िन्दगी का कोई अदृश्य बही-खाता हो
जहाँ हर घाव दर्ज करना
मेरी मजबूरी बन गई थी।
पर एक रात,
जब कमरा अंधेरे से भरा था
और नींद ने आँखों से नाता तोड़ लिया था,
तब भीतर से एक आवाज़ आई—
“क्या तू वाक़ई यही ज़िन्दगी जी रही है?
सिर्फ गिनती?”
उस आवाज़ ने मुझे
सालों पीछे धकेल दिया—
उस मासूम लड़की तक,
जो गली के कोने में खड़ी होकर
बिना सोचे-समझे हँस लेती थी,
जिसके पाँव कीचड़ में भी नाच उठते थे,
जिसे किसी हिसाब से कोई मतलब नहीं था।
मैंने खुद से पूछा—
वो लड़की कहाँ खो गई?
कब मैंने उसे
हिसाबों की ज़ंजीरों में बाँध दिया?
फिर याद आया—
पढ़ाई में नंबरों का दबाव,
रिश्तों में उम्मीदों का बोझ,
और समाज के सवाल—
“तुम्हें अब तक क्या मिला?”
“कितनी ऊँचाई पाई?”
“तुम्हारा भविष्य कितना सुरक्षित है?”
इन सबने मुझे गिनती सिखाई,
पर जीना भुला दिया।
उस दिन समझ आया—
हर पल जीना होता है
बिना कैलकुलेटर,
बिना तराज़ू,
बिना डर।
क्योंकि जीवन कोई व्यापार नहीं है,
ये तो एक अधूरा गीत है
जो गाते-गाते ही पूरा होता है।
तो अब मैंने ठान लिया है—
मैं हिसाब नहीं रखूँगी
कि कितनी बार टूटी,
कितनी बार संभली।
मैं बस लिखूँगी,
जीवन की डायरी में—
“आज मैंने जिया।”
चाहे एक बूँद बारिश में,
चाहे एक अधूरी मुस्कान में,
चाहे अपनी ही चुप्पी की गहराई में।
क्योंकि—
हिसाब में कैद ज़िन्दगी
कभी ज़िन्दगी नहीं बनती।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




