हम साथ रह कर भी तन्हा थे ये दोनों जानते थे
मगर बाहर वाले दो जिस्म एक जान समझते थे
ज़िंदगी जो दिखती है हक़ीक़त वो होती नहीं
हमलोग उसी हक़ीक़त को ज़िंदगी समझ कर जीते थे
बाकी सब सही चल रहा था क्योंकि सिर्फ़
एक बिंदु ऐसी थी जिसपर हम कभी नहीं मिलते थे
फिर भी न जाने कौन सा ऐसा धागा था जो
हमें ऐसे बांध रखा था कि हम कभी अलग नहीं रहते थे