बात उन दिनों की है जब मैं स्कूलों में पढ़ा करती थी ,
अकसर बेटियाँ हर घरों में दिखा करती थीं |
माँ - बाप से ज्यादा दूसरों को बोझ लगा करती थी ,
ये बातें अकसर बहुत चुभा करती थीं |
धनवानों की बेटी हो या हो दीनों की ,
सोच बस शादियों तक सीमित रहा करती थी |
इक्के - दुक्के ही घर में समझी जाती थी ,
कुछ ही भाग्यशाली मानी जाती थी |
ना मोबाइल का जमाना था ,
ना हम स्टेटस में पाए जाते थे
बेटियाँ आंगन की शोभा कम ,
पिता की टेंशन ज्यादा मानी जाती थी |
आज के दौर में बेटी के लिए तो अच्छे दिन आ ही गए हैं ,
सबके मन में बेटी भा ही गई हैं |
अब बेटियां आंगन की शोभा के साथ-साथ ,
पिता को भाग्यशाली बनाने लगी है |
"सोनी " के मन में खुशियाँ छाने लगी है |
----सोनी कुमारी