जो अपना नहीं, उस पर हक़ क्या जताना,
जो एहसास न करे, उसे दर्द क्यों बताना।
दिल के ज़ख्मों को लफ़्ज़ों में ढाल भी दूँ,
तो क्या वो मेरी खामोशी को समझ पाएगा?
जो ठहर न सके, वो साया नहीं होता,
जो सुन न सके, वो सच्चा नहीं होता।
हर आँख का आँसू हर दिल को दिखता नहीं,
हर मुस्कान के पीछे उजाला नहीं होता।
मैं अपनी टूटन को आइना दिखाऊँ भी तो किसे?
यहाँ लोग शक्लें देखते हैं, आत्मा नहीं।
जो हर मोड़ पर बदल जाए रास्तों सा,
उसे मंज़िल का पता क्यों बताना?
कुछ रिश्ते सिर्फ़ हवा के झोंके होते हैं,
जो छूकर गुज़र जाते हैं, ठहरते नहीं।
जो दिल के वीरानों में दीपक जलाए नहीं,
उसे उजालों की दास्तान क्यों सुनाना?
अब शब्द भी थक चुके हैं सिसकियों के बोझ से,
अब अश्क भी समंदर में मिलकर खो चुके हैं।
जो अपना नहीं, उस पर हक़ क्या जताना,
और जो तकलीफ़ न समझे, उसे दर्द क्यों बताना…

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




