बिना मेहनत और ईमानदारी के लोग
सब कुछ पाना चाह रहें हैं और
ढोंगीं पाखंडी बाबाओं के जाल में फंस रहें हैं ।
किसी को फ्री में नौकरी चाहिए
तो किसी को छोकरी ।
किसी को बिन काम किए मिल जाए
नोटों की टोकरी।
गांवों में तो अंधविश्वास का और बुरा हाल है।
खेती खलिहानी छोड़ के लोग अपनी ज़मीनें तथाकथित बाबाओं को दान दे रहे हैं ,
और बाले बच्चे बीवी पूरे परिवार संग
बाबा के अरदली में लगें हैं।
कैसे कैसे लोग ऐसे कैसे लोग
मोबाइल इंटरनेट के ज़माने में लालटेन ने जी रहें हैं।
अपने लोग बुरा लगें सभी को बस पराये
पर विश्वाश कर रहें हैं।
अरे अक्ल के अंधों दिन में आंख बंद कर के रात बोलते हो और दो रूपये बचाने के लिए क्या क्या नहीं करते हो
तो फिर इतनी आसानी से मूर्ख क्यों बनते हो।
कोई बहरूपिया तुम्हारी सारी धन दौलत प्यार सम्मान लूट रहा है ।
और तू बूत बना खड़ा है।
अरे मूर्ख इस मृत्युलोक में कोई आम आदमी भगवान कभी भी नहीं हो सकता है।
क्योंकि जो वाकई वह भगवान है तो उसके
लिए जेड प्लस सुरक्षा क्यों
और तुहरे लिए हनुमान चालीसा।
भगवान के नाम पर सब गोरखधंधा चल रहा है।
और धर्म का खुल कर व्यापारीकरण हो रहा है।
अब डेली सोप की तरह धार्मिक चैनलों की भी बढ़ आ गई है
और बड़े बड़े ट्रस्टों में ब्लैक मनी व्हाइट हो रही है।
सब रुपया और नंबर का खेल है।
बाबाओं के साथ राजनीतिक तेल बेल है।
तभी तो धड़ल्ले से ऐसी दुकानें चल रहीं हैं।
लोगों की मानसिक धार्मिक आर्थिक सामाजिक न्यायिक उत्तपिरण हो रही है।
फिरभी अंधभक्ति इस क़दर हावी है कि
सबको लगता ये सब सही है।
बस यही उनके भगवान की मर्जी है।
सबको लगता ये सब सही है...
है यह भक्ति की ये अंध भक्ति है ...
है यह भक्ति की ये अंध भक्ति है...
ज़रा गौर कीजिएगा..!

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




