हाथों से सिर्फ़ रेत ही टकराई,
कुछ पल चमक फिर ओझल हो आई।
कतरा बन रेत पर जो चली आई,
बूंद सी वो ज़िंदगी फिर नज़र न आई।
अंश अपना दफन कर मँझधार में लौट आई,
साहिल की ख़ामोशी बहुत कुछ कह आई।
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कतरा बन रेत पर जो चली आई,
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साहिल की ख़ामोशी बहुत कुछ कह आई।