साथी हमसे पूछो
साथी हमसे तो पूछो क्या ग़म है,
बात नहीं होगी आँखें नम है,
टूटे नहीं, बिखरे नहीं
यही क्या कम है,
दौड़-दौड़कर आते थे रोने तुम्हारे जज्बातों में,
हँसनें से क्या सब सम हैं,
मोहब्बत के नज़ारों में,
बेवफा रहकर,
प्रेम करने में क्या दम है,
धोखा भी,
अपने उसूलों से कम है,
साथी हमसे पूछो क्या ग़म है,
बात नहीं होगी आँखें नम हैं।।
- ललित दाधीच