है अधूरी बात मगर पूरी समझ बैठी।
उनसे दूर रहकर उन्हीं से जुड़ी बैठी।।
वैसे तो व्यस्त रहती वक्त कट जाता।
गुफ़्तगू शुरू अन्दर रह न पाती बैठी।।
उस वक्त में आ जाता ख्याल ऐसे ही।
पलग पर लेटी हुई तकदीर जैसे बैठी।।
रिश्ता गहरा लगता मगर बन्धन नही।
कहती रूह की पहरेदारी करती बैठी।।
अकेले ही सही अब खुद के लिए जीना।
रवैया बदला आँखों में सपने लिए बैठी।।
बिना कोई रस्म के 'उपदेश' लगते भले।
प्रेम ऐसा फला-फूला उसी आसरे बैठी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद