घर से निकली थी,कुछ और सोच लिए,
घर से निकली थी कुछ और सोच लिए, पहुँची जब वहाॅं
तो पता चला
मुझे छोड़ पूरी दुनियां एक है यहाॅं।
मेरे जज़्बातों की कद्र वहाॅं भी नहीं हुई,
मेरे जज़्बातों की कद्र वहाॅं भी नहीं हुई, सोचकर निकली थी घर से मैं
यहाँ नहीं तो वहाॅं तो होगी कद्र मेरी।
जाल यहाॅं बिछे थे मेरे लिए कई ये सोच रही थी मैं,
जाल यहाॅं बिछे थे मेरे लिए कई ये सोच रही थी मैं, पहुँची जब वहाॅं
तो पता चला
जाल यहाॅं नहीं वहाॅं बिछे थे मेरे लिए।
हँसी आ रही है आज बहुत मुझे लोगों के विचारों को सुन, हँसी आ रही है आज बहुत मुझे लोगों के विचारों को सुन, भले ही बदल जाये कितना ही ज़माना, पर एक सोच जो है
लड़की के प्रति लोगों की
वो बदलेगी नहीं शायद कभी।
हँसी आ रही है आज बहुत मुझे
लोगों के विचारों को सुन.......
"रीना कुमारी प्रजापत"